जिन्नातो की मस्जिद, बहीर कॉलोनी, टोंक (राजस्थान)
आज में आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसे सुनकर शायद आपको यक़ीन न हो की हम इंसानो के अलावा भी इस दुनिया में ऐसी मख्लूख (Creature) यानि जिन्नात भी है जो बिलकुल हम जैसी ज़िन्दगी बसर करते है। हमारी तरह रहते है, खाते है, पीते है, इबादत करते है। जिस तरह हम इंसानो में अच्छे और बुरे, मोटे और पतले , गौरे और काले लोग होते है उसी तरह इस मख्लूख (Creature) में भी अलग अलग क़िस्म के लोग होते है। जिन्हे हम देख नहीं सकते लेकिन कभी कभी ये अपने होने का एहसास हम इंसानो को करा देते है।
ऐसा कहा जाता है की जो घर 40 दिन से ज़्यादा बंद रहे या जिस घर में रौशनी न जले उस जगह ये अपना घर बना लेते है। इनकी भी फॅमिली होती है, बच्चे होते है। जिस जगह ये अपना बसेरा कर लेते है फिर वह वहा किसी का आना बर्दाश्त नहीं करते और अपनी मौजूदगी का एहसास करा देते है। इनमे अच्छे जिन्नात आपको इशारा दे देते है की उस जगह से हट जाये और जो बुरे जिन्नात होते है वो लोगो को नुकसान भी पहुंचा सकते है।
में फ़राज़ उस्मानी अपने अज़ीज़ दोस्त ज़फर रशीद खान के साथ एक ऐसी मस्जिद का दौरा करके आये जिसके बारे में कहा जाता है की इस मस्जिद में जिन्नात इबादत करते है और नमाज़ भी पढ़ते है।
टोंक राजस्थान में स्तिथ बहीर कॉलोनी में एक बहुत पुरानी हवेली से जुड़ी ऐतिहासिक मस्जिद है जिसके एक तरफ पहाड़ी है और दूसरी तरफ कब्रिस्तान है जिसमे इंसानो के साथ जिन्नात भी नमाज़ पढ़ते है। अगर आप यहाँ नमाज़ पढ़ रहे है तो हो सकता है आपके पास खड़ा शख्स कोई जिन्नात हो। हालाँकि ये अच्छे जिन्नात है जो लोगो को कभी परेशान नहीं करते बस अपनी इबादत करते है और ख़ामोशी से रहते है। इनकी रिहाइश वाले हिस्से में ये किसी का आना पसंद नहीं करते। ऐसा कहना है इस मस्जिद के मुअज़्ज़िन का। उन्होंने हमे वो जगह दिखाई जहा जिन्नातो का बसेरा है। मस्जिद की छत पे एक कमरा बना हुआ है जो उस पुरानी हवेली का हिस्सा है। आप निचे दिए गए फोटो में देख सकते है।
आगे उन्होंने बताया की इस कमरे में ये जो खिड़किया नज़र आ रही है इसको बंद करने की कई बार कोशिश की गयी लेकिन कामयाबी नहीं मिली हर बार कुछ न कुछ ऐसा हो जाता था काम करने वाले वहा से भाग जाते थे किसी को थप्पड़ पढ़ते थे तो किसी को धक्का पढता था। इससे हमने ये अंदाज़ा लगाया की जिन्नातो को ये पसंद नहीं की इन खिड़कियों को बंद किया जाये।
इन जिन्नातो के डर की वजह से इस मस्जिद में बहुत कम लोग नमाज़ पढ़ने आते है जो लोग यहाँ रेगुलर नमाज़ पढ़ते है उन्हें कई बार एहसास हुआ है की उनके साथ बहुत सारे लोग नमाज़ पढ़ रहे है जो दिखाई नहीं देते लेकिन उनके साथ होने का एहसास हो जाता है। ऐसा लगता है की बहुत सारे लोग साथ में नमाज़ पढ़ रहे है। निचे दिए गए फोटो में वो हिस्सा जहा लोग नमाज़ पढ़ते है।
जिस हवेली में ये मस्जिद है वहा दरियों और नमदा बनाने का कारखाना चलता है वहा काम करने वाले लोगो ने बताया की हम सालो से यहाँ काम कर रहे है लेकिन हमें कभी कोई परेशानी नहीं हुई। हम जिन्नातो वाले कमरे में कमरे के बहार अपना सामान भी रखते है लेकिन एहतियात रखते है की हम से ऐसी कोई गुस्ताखी नहीं हो जिससे जिन्नातो को कोई परेशानी हो। एक किस्सा भी बताया की हवेली के एक कमरे में यहाँ काम करने वाला एक शख्स रहता था। जो रात में बिना कपड़ो के सोने का आदि था और नहाने के लिए भी नंगा ही बाहर निकल जाता था कुछ टाइम बाद वो बंद कमरे में मारा हुआ पाया गया और देखने वाले बताते है की उसकी गरदन मुढ़ी हुई थी ऐसा लगता था जैसे किसी ने गर्दन मोड़ के उसे मार दिया हो। निचे दिए गए फोटो में आप इस कारख़ाने को देख सकते है।
ये वो कमरा है जहा जिन्नात रहते है। इस कमरे में घुसते ही आपको एक दालान के दर नज़र आएंगे जहा दरिया राखी हुई है आप फोटो में देख सकते है। अंदर सामने जो झरोका (खिड़की) नज़र आ रही है वही है जिसे ये बंद करने नहीं देते। इसके दाहिनी तरफ तहखाने की सीढिया जा रही है। इन सीढ़ियों पे जाते ही मुझे अजीब सी बेचैनी का एहसास हुआ और में वापस पलट आया।
रात होते ही यहाँ सन्नाटा छा जाता है। किसी की हिम्मत नहीं होती की वो रात को अकेला यहाँ से गुज़र जाए। लोगो में काफी डर है इस जंगह को लेकर। हर जुमेरात यहाँ दूर दूर से लोग आते है जिनमे महिलाये भी शामिल है। कहा जाता है की जुमेरात को जिन्नातो की सवारी निकलती है।
इस सिलसिले में मेने इतिहास के मशहूर शोधकर्ता डॉ सय्यद सादिक़ अली जो की एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ़ उर्दू, गवर्नमेंट पी जी कॉलेज, टोंक है से गुज़ारिश की वो इसकी हिस्ट्री की ऑथेंटिक जानकारी हमसे शेयर करे. उनके अनुसार
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Jinnato Ki Masjid, Baheer Colony, Tonk Rajasthan |
आज में आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसे सुनकर शायद आपको यक़ीन न हो की हम इंसानो के अलावा भी इस दुनिया में ऐसी मख्लूख (Creature) यानि जिन्नात भी है जो बिलकुल हम जैसी ज़िन्दगी बसर करते है। हमारी तरह रहते है, खाते है, पीते है, इबादत करते है। जिस तरह हम इंसानो में अच्छे और बुरे, मोटे और पतले , गौरे और काले लोग होते है उसी तरह इस मख्लूख (Creature) में भी अलग अलग क़िस्म के लोग होते है। जिन्हे हम देख नहीं सकते लेकिन कभी कभी ये अपने होने का एहसास हम इंसानो को करा देते है।
ऐसा कहा जाता है की जो घर 40 दिन से ज़्यादा बंद रहे या जिस घर में रौशनी न जले उस जगह ये अपना घर बना लेते है। इनकी भी फॅमिली होती है, बच्चे होते है। जिस जगह ये अपना बसेरा कर लेते है फिर वह वहा किसी का आना बर्दाश्त नहीं करते और अपनी मौजूदगी का एहसास करा देते है। इनमे अच्छे जिन्नात आपको इशारा दे देते है की उस जगह से हट जाये और जो बुरे जिन्नात होते है वो लोगो को नुकसान भी पहुंचा सकते है।
में फ़राज़ उस्मानी अपने अज़ीज़ दोस्त ज़फर रशीद खान के साथ एक ऐसी मस्जिद का दौरा करके आये जिसके बारे में कहा जाता है की इस मस्जिद में जिन्नात इबादत करते है और नमाज़ भी पढ़ते है।
टोंक राजस्थान में स्तिथ बहीर कॉलोनी में एक बहुत पुरानी हवेली से जुड़ी ऐतिहासिक मस्जिद है जिसके एक तरफ पहाड़ी है और दूसरी तरफ कब्रिस्तान है जिसमे इंसानो के साथ जिन्नात भी नमाज़ पढ़ते है। अगर आप यहाँ नमाज़ पढ़ रहे है तो हो सकता है आपके पास खड़ा शख्स कोई जिन्नात हो। हालाँकि ये अच्छे जिन्नात है जो लोगो को कभी परेशान नहीं करते बस अपनी इबादत करते है और ख़ामोशी से रहते है। इनकी रिहाइश वाले हिस्से में ये किसी का आना पसंद नहीं करते। ऐसा कहना है इस मस्जिद के मुअज़्ज़िन का। उन्होंने हमे वो जगह दिखाई जहा जिन्नातो का बसेरा है। मस्जिद की छत पे एक कमरा बना हुआ है जो उस पुरानी हवेली का हिस्सा है। आप निचे दिए गए फोटो में देख सकते है।
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Jinnato Ki Masjid, Baheer Colony, Tonk Rajasthan |
आगे उन्होंने बताया की इस कमरे में ये जो खिड़किया नज़र आ रही है इसको बंद करने की कई बार कोशिश की गयी लेकिन कामयाबी नहीं मिली हर बार कुछ न कुछ ऐसा हो जाता था काम करने वाले वहा से भाग जाते थे किसी को थप्पड़ पढ़ते थे तो किसी को धक्का पढता था। इससे हमने ये अंदाज़ा लगाया की जिन्नातो को ये पसंद नहीं की इन खिड़कियों को बंद किया जाये।
इन जिन्नातो के डर की वजह से इस मस्जिद में बहुत कम लोग नमाज़ पढ़ने आते है जो लोग यहाँ रेगुलर नमाज़ पढ़ते है उन्हें कई बार एहसास हुआ है की उनके साथ बहुत सारे लोग नमाज़ पढ़ रहे है जो दिखाई नहीं देते लेकिन उनके साथ होने का एहसास हो जाता है। ऐसा लगता है की बहुत सारे लोग साथ में नमाज़ पढ़ रहे है। निचे दिए गए फोटो में वो हिस्सा जहा लोग नमाज़ पढ़ते है।
जिस हवेली में ये मस्जिद है वहा दरियों और नमदा बनाने का कारखाना चलता है वहा काम करने वाले लोगो ने बताया की हम सालो से यहाँ काम कर रहे है लेकिन हमें कभी कोई परेशानी नहीं हुई। हम जिन्नातो वाले कमरे में कमरे के बहार अपना सामान भी रखते है लेकिन एहतियात रखते है की हम से ऐसी कोई गुस्ताखी नहीं हो जिससे जिन्नातो को कोई परेशानी हो। एक किस्सा भी बताया की हवेली के एक कमरे में यहाँ काम करने वाला एक शख्स रहता था। जो रात में बिना कपड़ो के सोने का आदि था और नहाने के लिए भी नंगा ही बाहर निकल जाता था कुछ टाइम बाद वो बंद कमरे में मारा हुआ पाया गया और देखने वाले बताते है की उसकी गरदन मुढ़ी हुई थी ऐसा लगता था जैसे किसी ने गर्दन मोड़ के उसे मार दिया हो। निचे दिए गए फोटो में आप इस कारख़ाने को देख सकते है।
ये वो कमरा है जहा जिन्नात रहते है। इस कमरे में घुसते ही आपको एक दालान के दर नज़र आएंगे जहा दरिया राखी हुई है आप फोटो में देख सकते है। अंदर सामने जो झरोका (खिड़की) नज़र आ रही है वही है जिसे ये बंद करने नहीं देते। इसके दाहिनी तरफ तहखाने की सीढिया जा रही है। इन सीढ़ियों पे जाते ही मुझे अजीब सी बेचैनी का एहसास हुआ और में वापस पलट आया।
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Is Kamre me Jinnato Ka Basera hai |
रात होते ही यहाँ सन्नाटा छा जाता है। किसी की हिम्मत नहीं होती की वो रात को अकेला यहाँ से गुज़र जाए। लोगो में काफी डर है इस जंगह को लेकर। हर जुमेरात यहाँ दूर दूर से लोग आते है जिनमे महिलाये भी शामिल है। कहा जाता है की जुमेरात को जिन्नातो की सवारी निकलती है।
इस सिलसिले में मेने इतिहास के मशहूर शोधकर्ता डॉ सय्यद सादिक़ अली जो की एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ़ उर्दू, गवर्नमेंट पी जी कॉलेज, टोंक है से गुज़ारिश की वो इसकी हिस्ट्री की ऑथेंटिक जानकारी हमसे शेयर करे. उनके अनुसार
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Dr. Syed Sadique Ali |
"अस्ल में यह मस्जिद और हवेली नवाब मीरखां के सिपहसालार महमूद खां ने बनवाई थी। एक अरसे तक वीरान रही तो यहाँ अल्लाह की ग़ैर मरई मख़लूक़ात क़ाबिज़ हो गई हैं जिसका एहसास वहां नमाज़ पढ़ने वालों को हो जाता है। पुराने लोग जो क़िस्से सुनाते हैं उनसे जिन्नातों के वुजूद का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।इस मख़लूक़ ने यहां किसी को सताया नहीं, वो अपने काम से काम रखते हैं। आजकल यहां नमदे और दरियां तैयार होती हैं। दिन में काम होता है, रात में कारख़ाने वाले भी इसे छोड़ देते हैं। आसपास के लोग यहां नमाज़ अदा करते हैं। हवेली में तहखाना भी है लेकिन उसमें कोई नहीं जाता।"